जोगिन्द्र सिंह कंवल के उपन्यास ‘धरती मेरी माता’ में प्रवासी भारतीयों की समस्याएं
Subashni Shareen Lata
जोगिन्द्र सिंह कंवल एक ऐसे उपन्यासकार है जिन्होंने फीजी की समकालीन भारतीय समाज की विभिन्न परिस्थितियों, प्रवृत्तियों व समस्याओं का विस्तृत, गहरा एवं यथार्थ अनुभव किया है। ‘धरती मेरी माता’ कंवल जी का एक सामाजिक समस्या प्रधान उपन्यास है। इस उपन्यास में औपनिवेशिक काल में भारत से फीजी द्वीप आकर बसने वाले प्रवासी भारतीयों की जमीन की समस्या उठाई गई है। गिरमिट प्रथा समाप्त हो जाने पर कई भारतीय श्रमिकों ने फीजी देश को अपने खून-पसीने से सींचा और इस धरती को अपना घर समझकर यहीं बस गए। उक्त उपन्यास में श्यामसिंह का परिवार फीजी के भूमिहीन किसानों का प्रतिनिधित्व करता है। दुखों, कष्टों, परेशानियों के बावजूद भारतीय किसान धरती से संबंधित अपने धर्म को निभाते हैं। लेकिन, जब कानूनी रूप से जमीन की लीस का नवीकरण नहीं हो पाता है तब किसान टूट जाते हैं और उन्हें अपने जमीनों से विस्थापित होना पड़ता हैं। प्रस्तुत उपन्यास में कंवल जी ने जमीन से जुड़ी इन्हीं समस्याओं को उठाया हैं।
Subashni Shareen Lata. जोगिन्द्र सिंह कंवल के उपन्यास ‘धरती मेरी माता’ में प्रवासी भारतीयों की समस्याएं. Sanskritik aur Samajik Anusandhan, Volume 1, Issue 1, 2020, Pages 17-21