भारत में सन् 1952 से 1967 तक कांगे्रस पार्टी का एकाधिकार स्थापित रहा। परन्तु 1967 से भारतीय राजनीति में ऐसा परिवर्तन आया कि भारतीय राजनीति का स्वरुप ही बदल गया लेकिन सन् 1967, 1977 और 1990 में दलीय स्थिति अपने थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद अपने मूल रुप से आकर टिक गयी। सन् 1967 के चतुर्थ आम चुनाव में भारतीय संघ के लगभग आधे राज्यों के कांग्रेस ने अपना बहुमत खो दिया और विरोधी दलों आपसी गठजोड़ कर संविदा सरकारों की नींव रखी। गठजोड़ के राजनीति ने राज्यों ही नहीं बल्कि केंन्द्र में 1977 के लोकसभा चुनावों में भी अपना असर दिखाया और पहली बार केंन्द्र में गठजोड़ जनता पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनी। सन् 1977 में लोकसभा चुनाव से पूर्व अर्थात 1967 के चतुर्थ आम चुनाव के बाद जब शेख अब्दुल्ला ने कई लोगों की उपस्थिति में लोकनायक जयप्रकाश से कहा कि 1967 के बाद की राजनीतिक स्थिति इतनी भयंकर हो गई तो सभी राजनीतिज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया। शेख अब्दुल्ला जब जयप्रकाश नारायण से मिलने उनके आवास पर गये तो उन्होंने जयप्रकाश नारायण से भारतीय राजनीति में हुई बुराइयों को दूर कर उनसे राजनीति में आने की अपील की। शेख अब्दुल्ला की अपील पर जय प्रकाश नारायण ने कहा कि मैं राजनीति में फिर से आना नहीं चाहता पर यह सोच रहा हूॅ कि किस प्रकार भारतीय जनता को राजनीति के ऐसे भॅवर से कैसे निकाला जाए। जय प्रकाश नारायण ने कहा कि राजनीति के अन्धॅकार में नहीं जाना चाहता हूॅ बल्कि उसके स्थान पर जनता के साथ उनके सुख-दुख में रहना चाहता हूॅ। 1967 के बाद राजनीति में एक नया मोड़ आया छोटे-छोटे प्रादेशिक दलों ने भी राजनीति को प्रभावित करना शुरु किया। नेताओं ने खूब दल बदल किये। उत्तर-प्रदेश में 1967 से 1977 तक लगातार दल-बदल के कारण कांग्रेस ने सरकार का निर्माण किया तो कभी गैर-कांग्रेसी दल सत्ता रुढ़ हुई परन्तु कोई दल राज्य में स्थायी सरकार नहीं दे पाया।