मानव आदिकाल से ही प्रकृति के वशीभूत था। प्रकृति को सारी कलाओं की जननी माना गया है। प्रागैतिहासिक कला में पशु तथा वनस्पति जगत् का अधिक प्रतीकात्मक अंकन विद्यमान है। अतः मंगल कामना तथा सुरक्षा हेतु उसने वृक्ष, जल आदि की पूजा आरम्भ की ओर उनमें देवता का निवास माना। इस प्रकार प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर मानव कलाकार अपनी कला को प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित हुआ। प्रकृति के मूल में जो ऊर्जा शक्ति है। वही मानव को प्रेरणा प्रदान करती है।
इस प्रकार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की कल्पना शक्ति ही मनुष्य के लिए कला के रूप में सहायक सिद्ध हुई। कला का संबंध धर्म से है जिसके अंतर्गत मनुष्य ने धार्मिक कृत्यों को सजीव तथा महत्वपूर्ण बनाने के लिए कला का आश्रय लिया गया। परिणामस्वरूप मूर्ति-पूजा के साथ-साथ अन्य प्रतीकों का निर्माण होने लगा। जिनमें मांगलिक प्रतीकों का भी महत्व है। मांगलिक प्रतीकों का मुख्य आधार उसकी धार्मिक भावना ही है। कला में ये प्रतीक किसी न किसी देवता से सम्बद्ध है। प्रतीकों के सान्निध्य से मूर्ति के विशेष भाव एवं गुण के प्रदर्शन का बोध होता है।