डाॅ. भीमराव अम्बेडकर का चिन्तन सामाजिक न्याय का मुख्य स्वर था कि मानव मात्र की मूल प्रतिष्ठा उसके अधिकारों को मिलने में है। इससे समाज में समुचित एवं सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा। भारतीय समाज में समाजशास्त्रीय अध्ययन के प्रारम्भ से पहले ही डाॅ. अम्बेडकर ने जातिव्यवस्था का मूल रूप से नृवंशशास्त्रीय और समाज से जुड़ें मुद्दों पर शोध आलेख लिख कर समाज की समस्या को प्रस्तुत किया, क्योंकि न्याय की संकल्पना भारत के परम्परागत सामाजिक चिन्तन को सर्वश्रेष्ठ तत्वों के रूप में समाहार करना था। नहीं तो रूसी क्रांति द्वारा प्रस्तुत समाजवादी और साम्यवादी चिन्तन के सर्वश्रेष्ठ तत्व सामने आयेगें। इन्हीं उद्देश्यों से सामाजिक न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कार्य बाबा साहब डाॅ. भीमराव अम्बेडर ने किया। समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति को बिना उसके धर्म व जातियों को ध्यान में रखे ही। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का अथक प्रयास किये, जिससे लोगों को भोजन, कपड़ा और मकान जैसी छोटी जरूरतों को पूरा किया जा सकें। इससे प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक एवं सामाजिक विकास का समुचित अवसर मिले। सामाजिक न्याय का उद्देश्य है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को हर सम्भव विकास के अवसर से वंचित रखा गया है। उन्हें भी विशेष अवसर प्राप्त हो सकें। इससे सामाजिक व्यवस्था को अधिक मानवीय और न्यायसंगत बनाया जा सकता है। डाॅ. आर.एन. मुखर्जी के अनुसार “सामाजिक जीवन की समस्याओं का अस्तित्व सदा से ही था और सदा ही बना रहेगा।“1