सूफी काव्य का मुख्य प्रेरक तत्त्व है -प्रेम और रहस्यवाद। सूफी संत कवियों के काव्याभिव्यक्ति में जीवन और जगत,जीवात्मा और परमात्मा के संबंधों की अभिव्यक्ति प्रेम और रहस्य भावना के रूप में हुईं। सूफियों की मान्यता है कि इस संसार की उत्पत्ति परमात्मा ने प्रेम के कारण की है इसलिए संसार के समस्त वस्तुओं में उस परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। जीव का जन्म ही परमात्मा के अनन्त सौंदर्य और अखंड प्रेम से बिछड़ने का कारण है। इसलिए प्रेमपंथ के साधक सूफी परमात्मा के विरह में जलते रहते है। सूफी काव्य में विरह का साम्राज्य है।
सूफियों की प्रेम- साधना ऐकान्तिक,वैयक्तिक और रहस्यवादी है। प्रियतम (परमात्मा) शरीर के अंदर है उसे कहीं बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं है। परंतु वासनाओं से कलुषित हृदय में परमात्मा दिखाई नहीं देते । रहस्यवादी साधना अमूर्त्त सत्ता की साधना होकर भी उसकी मूर्त अभिव्यक्ति करता है। सूफी काव्य में ईश्वर का स्वरूप स्त्री रूप में वर्णित हुआ है। सूफियों का दर्शन विशिष्टाद्वैती प्रकार का है। वियोग के साथ -साथ संयोग श्रृंगार का वर्णन सूफी काव्य को दुनियाँ के सूफी काव्य से अलग पहचान देती है। सूफी- साधना और सूफी -काव्य का केंद्रीय वस्तु श्प्रेमश् है।