तुलसीदास का विषय क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। उन्होंने जीवन के किसी अंग विशेष का चित्रण न करते हुए उसकी समग्रता का चित्रण किया। वे मर्यादावादी कवि थे । अतः उनकी कृतियों में लोकधर्म एवं मर्यादा का निर्वाह बराबर किया जाता रहा है। उनकी रचनाओं में भक्ति, धर्म, संस्कृति एवं साहित्य का अद्भुत संगम हुआ है। रामचरितमानस के माध्यम से भारतीय संस्कृति के रीति रिवाज धर्म, संस्कार नीति निरूपण को परिभाषित करने वाले तुलसीदास जी युग दृष्टा कवि है। वैदिक काल से ही गर्भावस्था से लेकर अन्त्येष्टि के संस्कारों का जो रूप तुलसीदास जी के काव्य में भिन्नता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। ’रामचरितमानस’ के तुलसी जी ने परम्परागत सभी संस्कारों का निरूपण भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।