हिन्दी कथा-साहित्य में आंचलिकता की प्रवृत्ति नयी कहानी-आन्दोलन से प्रविष्ट हुई है तथा फणीश्वरनाथ रेणु, शिव प्रसाद सिंह एवं मार्कण्डेय, जिन्हें ग्रामांचल के कथाकार कहा जाता है, इसके प्रवर्तक कथाकार हैं, एवं शैलेश मटियानी, लक्ष्मी नारायण लाल, राजेन्द्र अवस्थी, मधुकर गंगाधर, केशव प्रसाद मिश्र, शेखर जोशी, ओंकारनाथ श्री वास्तव, हिमांशु जोशी आदि भी इसी श्रेणी के कथाकार हैं। ऐसी अधिकांश लोगों की अवधारणा रही है, परन्तु नयी कहानी के सशक्त आलोचक डॉ. सुरेश सिन्हा के मत में बलवन्त सिंह हिन्दी के प्रथम आंचलिक कहानीकार है, जिन्हें केवल उर्दू का कहानीकार मानकर साहित्य-समीक्षकों ने उनकी हिन्दी-कहानी की उपेक्षा ही की है। इस लेख में इस तथ्य को दृष्टिगत कर उनके समृद्ध हिन्दी कहानी-साहित्य का मूल्यांकन करते हुए उनकी उत्कृष्ट कहानी-कला एवं उनमें आंचलिकता की प्रवृत्ति का यथोचित समीक्षण करने का एक प्रयास किया गया है ताकि पंजाबवासी इस लेखक के हिन्दी-कहानीकार रूप को भी साहित्यानुरागियों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके। वस्तुतः ये ऐसे हिन्दी कहानीकार हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों में क्षेत्र-विशेष (पंजाब) की सच्ची तस्वीर अंकित कर अपने पाठकों को उससे रू-ब-रू करने में अग्रणी भूमिका अदा की है।