द्वापर, हो त्रेता हो या फिर कलयुग हो स्त्री का शोषण हमारे देश में चला आ रहा है, केवल रूप परिवर्तित होता जा रहा है। उसे न केवल बाह््य समाज बल्कि स्वयं अपने परिवार से और यहाँ तक कि खुद से भी निरंतर संघर्ष करना पड़ा है। इसी संघर्ष को सिमोन द बाउअर ने अपनी पुस्तक ”द सैकंड सेक्स“ में बताया है ”स्त्री पैदा नही होती, उसे बना दिया जाता है।“ महिला की इस स्थिति के लिए सिर्फ पुरूष ही जिम्मेदार नही है, बल्कि महिला भी उत्तरदायी है, क्योंकि अत्याचार करने से ज्यादा अत्याचार सहने वाला अपनी स्थिति का स्वयं जिम्मेदार होता है। देश की समस्त महिलाओं को उनके अधिकारों, अस्मिता के प्रति सजग बनाने एर्वं आिर्थक दृष्टि से सबल बनाना स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रयत्न करना ही ‘स्त्री-विमर्श’ है।