उषा प्रियंवदा के पचपन खंभे और लाल दीवारें उपन्यास में चित्रित भारतीय नारी
डाॅ. अनूषा निल्मिणी सल्वतुर
इसमें कोई संदेह नहीं कि उषा प्रियंवदा ने भी हिंदी की स्वातंत्र्योत्तर महिला कथाकारों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है अर्थात आधुनिक उपन्यास साहित्य को समृद्ध करने में इनका योगदान विशिष्ट है। पुराने रीति-रिवाज़, संस्कार, सामाजिक बंधनों में जकड़ी भारतीय नारी आज हर क्षेत्र में न केवल पुरुष के कंधों में कंधा मिला रही है, बल्कि राजनीति, समाज, साहित्य आदि क्षेत्रों में उच्च पदों की अधिकारी बन गयी है। आधुनिक नारी की मनस्थिति, पारिवारिक जीवन में पति-पत्नी के संबंध आदि विषयों को लेकर अनुभव के सीमित दायरे के अंतर्गत साहित्य रचना जिन महिला कथाकसरों ने की है, उनमें उषा प्रियंवदा का नाम हिंदी साहित्य जगत में उल्लेखनीय है। उषा प्रियंवदा की रचनाओं का प्रमुख कथ्य नारी मन की आलोचना है। विचारकों के कथनानुसार उसके पीछे प्रकट सामाजिक उद्देश्य भी है। नारी के विविध स्वरूपों को अनावृत्त करके उसके जीवन की समस्याओं की ओर वेे अपनी दृष्टि डालती हैं, अर्थात तत्कालीन संघर्षमय जीवन के विभिन्न संदर्भों में नरी के अधिकारों के लिए लड़ने की सामथ्र्य उषा प्रियंवदा के रचना व्यक्तित्व की विशेषता है। भारत में निवास करनेवाली आज की नारी और भारत के बाहर जाकर विदेश में रहनेवाली भारतीय नारी, इन दोनों के जीवन यथार्थ से उनका परिचय है। क्योंकि जीवन के प्रारंभिक वर्ष भारत में बिताये हैं, और जीवन का अधिकांश भाग अमेरिका में एक प्रवासी के रूप में बिताये हैं। फलतः उनकी सभी रचनाएँ नारी अस्मिता का प्रामाणिक लेखन हैं। अतः आज के नारी जीवन की विभिन्न विसंगतियों का चित्रण करने में वह सफल हुई हैं। उषा प्रियंवदा उसी प्रकार की एक लेखिका हैं जिनकी रचनाओं का संसार स्त्री-पुरुष के संबंधों एवं उनके मानसिक संघर्षों से संबंधित है। स्वतंत्रता के बाद हिंदी उपन्यास को नयी दिशा देने में उषा प्रियंवदा का अनुपम योगदान रही है। एक महिला लेखिका होने के नाते उन्होंने उपने अनुभवों के आधार पर आज की नारी की सामाजिक नियति तथा मानसिकता को बड़ी गहराई से अभिव्यक्त करने की कोशिश की है। उनके उपन्यासों में खूब पढ़ी-लिखी नारी हैं, नौकरी करनेवाली नारी है, मध्यवर्गीय नारी की त्रासदी है तथा पारिवारिक समस्याओं से चक्कर लगानेवाली नारी भी हैं। उन्होंने परिवर्तित संदर्भ, नयी परिस्थितियों तथा अलसतापूर्ण मनःस्थितियों में पड़नेवाले नारी का वर्णन किया है। साथ ही अपनी रचनाओं में आधुनिक तथा भारतीय संस्कारों के मध्य के सूक्ष्म द्वन्द्व की सफलतापूर्वक चित्रिण किया है। इस प्रकार हिंदी की अन्य लेखिकाओं के बीच में उषा प्रियंवदा का स्थान महत्वपूर्ण है। वे साठोत्तरी हिंदी कथा साहित्य में एक नव जागरण लेकर आयी तथा उन्होंने हिंदी महिला लेखिकाओं में अपना अलग स्थान भी प्राप्त किया है।
डाॅ. अनूषा निल्मिणी सल्वतुर. उषा प्रियंवदा के पचपन खंभे और लाल दीवारें उपन्यास में चित्रित भारतीय नारी. Sanskritik aur Samajik Anusandhan, Volume 2, Issue 2, 2021, Pages 05-07