समकालीन परिप्रेक्ष्य में काव्य संग्रह ‘वही हूँ मैं’ की समीक्षा
ऋषिकेश सिंह
कोविड-19 के कुछ माह पूर्व आया सुदेश गेरा का काव्य-संग्रह ‘वही हूं मैं’ समकालीन परिवेश के संदर्भ में मानवीय संवेदना और प्रवृत्तियों का निरूपण करता है। वैश्वीकरण के इस उपभोक्तावादी संस्कृति के दौर में नगरीय जीवन की विसंगति से मानवीय एवं सामाजिक संबंधों में आए परिवर्तन को यह काव्य-संग्रह किस प्रकार सहजता से व्यक्त करता है इसकी पड़ताल शोध-पत्र में की गई है। इस रूप में इस काव्य-संग्रह की कुछ प्रमुख कविताओं के संदर्भों के साथ आलोचक विद्वानों के मतों का उद्धरण देते हुए भावगत एवं कथ्यगत विशेषता के साथ-साथ भाषिक एवं शिल्पगत पक्षों की समीक्षा का प्रयास भी किया गया है।