आधुनिकता पूर्व के हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की अभिव्यक्ति
Rahul Dev M
व्यंग्य हिन्दी साहित्य में आदिकाल से ही रहा है। वैदिक काल से ही व्यंग्य भारतीय साहित्य का हिस्सा रहा है। आदिकालीन साहित्य में व्यंग्य का प्रयोग परिहास करने के लिए किया करता था। व्यंग्य का लक्ष्य समाज में सुधार लाना या समाज में परिवर्तन लाना है। विकृतियां व्यंग्य को जनम देता है, सं 1050 से लेकर सं; 1900 तक के समय में भारत कई कठिन परिस्थितियों से गुजरा राजनीतिक स्तर पर हो या सामाजिक स्तर पर, हर क्षेत्र में विकृतियां फैली हुई थी लेकिन भक्तिकाल के कबीर दास के अलावा किसी और कवि ने व्यंग्य लेखन नहीं किया। भक्तिकाल में कबीर के अलावा तुलसी दास और सूर दास के रचनाओं में हमें व्यंग्य के नमूने देखने को मिलते हैं लेकिन वह सब निम्न कोड़ी के हैं। रीतिकाल में बिहारी के कुछ दोहों में व्यंग्य की झलक हमें देखने को मिलते हैं वह भी उच्च कोड़ी का नहीं हैं। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल से पूर्व के हिन्दी साहित्य में कबीर के अलावा कोई और ऐसा कवि नहीं है जिसे हम व्यंग्यकार की संज्ञा दे सकते हैं।