श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ में राष्ट्रवाद का अभिनव स्वरूप
दीक्षा मेहरा
स्वतंत्रता के पश्चात् राष्ट्रवाद की अवधारणा भी बदल गई। समस्त भारतीय जनमानस जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी, स्वतंत्रता के लेकर उनकी अलग-अलग अपेक्षाएं थी, स्वतंत्रता के पश्चात् जो परिस्थितियां भारतीय समाज में उभरी वह उन अपेक्षाओं से बिल्कुल भिन्न थी। सत्ता वर्ग में भ्रष्टाचार, लोलुपता, स्वार्थ आदि भावनाएं बलवती होती गई और आम जनता का समाज और राजनीति से मोहभंग का दौर शुरू हुआ। श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी‘ में व्यंगात्मक ढ़ग से स्वतंत्रता के बाद की परिस्थितियों को सफलता से उजागर किया गया है। जिसमें राष्ट्रवाद का अभिनव स्वरूप दिखाई देता है।
दीक्षा मेहरा. श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ में राष्ट्रवाद का अभिनव स्वरूप. Sanskritik aur Samajik Anusandhan, Volume 2, Issue 2, 2021, Pages 50-52