सामाजिक कुप्रथाओं के संबंध में गांधीवादी विचारों का अनुशीलन
पवन कुमार तिवारी
सामाजिक कुप्रथाओं सती प्रथा, दहेज प्रथा और स्त्री पुरुष असमानता पर गाँधी जी ने अपने विचारों द्वारा कड़ा विरोध जताया। गाँधीजी का कहना था कि जरूरी नही है कि जो प्रथायें किन्हीं भ्रान्तियों के कारण शुरू हुई और आज तक समाज मंें एक काले साये की तरह परछाई बनकर छायी हुई है वह भविष्य में बनी रहनी चाहिए हमें इस पर विचार करने की जरूरत है और जो समाज में विसंगतियाँ फैल रही हैं उसे रोकने की जरूरत है हमें उन्हीं प्रथाओं का अनुकरण करना चाहिए जो समाज के लिए लाभकारी व कल्याणकारी हो उसके अतिरिक्त जो समाज में असमानता पैदा कर रही हो, बुराइयाँ पैदा कर रही हों, विभेद फैला रही हों उसका त्याग तुरन्त करना चाहिए क्योंकि हम मानव हैं पशु नहीं और हमारे अन्दर सोचने की शक्ति और समझ है जिसके कारण सही और गलत का निर्णय हम कर सकते हैं उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जिस समाज में नारी का सम्मान नहीं, विधवा के साथ सहानुभूति नहीं, वह समाज सभ्य समाज की श्रेणी में नहीं आता उस समाज को पुर्नमूल्यांकन की जरूरत है अतएव हमें एक साथ मिलकर इन कुरीतियों का तिरस्कार करना चाहिए।