यह सर्वविदित है कि समय के साथ सब कुछ बदलता है। सभी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि सभी परिस्थितियां नित्य परिवर्तनशील हैं । सामाजिक - सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो पिछले शताब्दी में स्त्रियों के लिए अनेक सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। धर्म पर भी इसका पर्याप्त प्रभाव हुआ है। विश्व के सभी प्रमुख धर्मों में स्त्री को अनेक अवसर एवं अधिकार प्राप्त होने लगे। धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा, कई धर्मों में, आध्यात्म के दृष्टिकोण से भी स्त्रीयों को अनेक अवसर प्राप्त होने लगे। वैशविक परिवेश में हुए, स्त्री संबंधी, आंदोलनों ने इसे गति प्रदान की। यह आलेख धर्म एवं स्त्री विमर्श के इस अन्योनाश्रित संबंध का अन्वेषण का प्रयास करता है।