द्रष्टा एवं दृश्य का संयोग ही दुख का कारण है1 तथा इस संयोग का कारण है- अविद्या।2 क्योंकि अविद्या अनादिकालीन है। अतएव यह संयोग भी अनादिकाल से ही चला आ रहा है। इस संयोग के परिणामस्वरूप ही प्रकृति एवं पुरुष भ्रान्त होकर अपने स्वरूप को भुला बैठे हैं। अतः समस्त दुःखों से आत्यन्तिक निवृत्ति हेतु इस अविद्या निमित्तक संयोग को हटाना परमावश्यक है। इस अविद्या का नाश हो जाने पर जो बुद्धिसत्त्व एवं पुरुष के संयोग का अभाव होता है, वही मोक्ष कहा जाता है। वाचस्पति मिश्र ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि दुःख की निवृत्ति ही पुरुषार्थ है। भाष्यकार व्यास द्वारा जो आत्यन्तिक विशेषण दिया गया है उसका उद्देश्य प्रलयकालीन वियोग से इसका वैशिष्ट्य दिखाना है, ऐसा विज्ञानभिक्षु का मत है।