शब्दों के अर्थ-परिवर्तन की दिशाएँः संस्कृति और अर्थविज्ञान के परिपेक्ष में
हसंति प्रेमतिलक
भाषा संस्कृति का प्रधान वाहक होता है- यह मानव वैज्ञानिकों और भाषा वैज्ञानिकों द्वारा माना गया मत है। भाषा शब्द-समूह के द्वारा बनी गयी है जो उस भाषा की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। हर भाषा एक भाषा प्रणाली में चली आती है। उदाहरण के लिए हिंदी भारोपीय भाषा परिवार की भारत-ईरानी शाखा की भाषा है और उसकी मातृ भाषा संस्कृत है। इसलिए हिंदी में संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्द अधिक मात्रा में पाये जाते हैं, फिर भी उनका पूरी तरह मूल अर्थ में प्रयोग नहीं होते। उसका कारण यह होता है कि भाषा के जीवी शब्दों के अर्थ, भाषा के प्रयोग में परिवर्तन होते हैं। वह परिवर्तन उस विशिष्ट भाषा की संस्कृति के बदलावों के अनुसार होता है। मानव-विज्ञान और भाषा-विज्ञान की दृष्टि से ऐसे शब्दों के अर्थ-परिवर्तन किन-किन दिशाओं में होती हैं- इस विषय की चर्चा करना भाषावैज्ञानिक मानवविज्ञान (स्पदहनपेजपबंस ।दजीतवचवसवहल) नये विषय का एक आयाम है। यह आलेख हिंदी के शब्दों के अर्थ-परिवर्तन की दिशाएँ उदाहरण सहित अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है।
हसंति प्रेमतिलक. शब्दों के अर्थ-परिवर्तन की दिशाएँः संस्कृति और अर्थविज्ञान के परिपेक्ष में. Sanskritik aur Samajik Anusandhan, Volume 3, Issue 1, 2022, Pages 11-14