भारतीय परम्परा में भक्ति और ज्ञान का अद्भूत संयोग देखने को मिलता है, हमारी श्रेष्ठ परम्परा को समय-समय पर ऋषियों ने निरंतर नए रूप में प्रस्तुत कर भारतीय संस्कृति को पुनर्नावित करने का कार्य किया है ।इसी ऋषि परम्परा में रामानन्द का नाम इस अर्थ में विशिष्ठ है कि उन्होंने भारतीय लोक मानस को जागृत करने की दिशा में प्रयास किया। रामानुजाचार्य के शिष्य रामानन्द ने भक्ति और ज्ञान की ऐसी गंगा बहायी जिसमें समग्र भारत एक सूत्र में बंध गया, और भक्ति सम्पूर्ण भारत में प्रवाहित होने लगी। भारतीय चेतना की अजस्र धारा अत्यन्त निरन्तर रूप से भारत के स्व का वहन करती रही है। समय-समय पर इस अजस्र धारा के प्रवाह में गति शून्यता ने हमारी संस्कृति एवं सभ्यता को प्रभावित भी किया, लेकिन भारत के वैभवशाली प्रवाह ने समस्त अवरोधों को पार कर हमारे स्व को नयी चेतना और स्फूर्ति से जागृत करने का कार्य करती रही है। भारतीय चेतना कीे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता इसकी ग्रहणशीलता और उदारता है। ग्रहणशीलता की उदारता के साथ-साथ स्व की चेतना का सर्वोŸाम उदाहरण भारतीय भक्ति परम्परा में हम देख सकते हैं। हमारी भक्ति परम्परा में नाना प्रकार की साधना पद्धतियों का अनुस्यूतन हमारी सनातन जीवन पद्धति का अभिन्न अंग बन चुकी है।