सहजोबाई व दयाबाई मध्यकाल की दो ऐसी संत थी,जो समाज के बंधनों को तोड़ अपने ज्ञान प्रकाश से समाज को मुक्ति का रास्ता दिखाती रही। दोनों संतों की भक्ति व रहस्यवाद में भिन्ता मिलती है। सहजोबाई गुरु कृपा को ही मुक्ति मानती हैं। सहजोबाई ने आदर्श व्यक्तित्व व समाज के लिए गुरु महत्व की प्राथमिकता को स्वीकार किया है,। वही दया बाई गुरु के द्वारा बताए राम नाम को स्मरण करने से विदेह मुक्ति व संपूर्ण इच्छाओं से छुटकारा पाने वाला मानती हैं। दयाबाई ने सत्संगति का महत्व और हरि भजन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया है।